Tuesday, July 30, 2019

मर्चेंट नेवी में चयन हो जाने के बाद भी सेना को चुना

अमर उजाला में ख़बर है कि भारत ने अमरीकी दबाव को दरकिनार करते हुए रूस से R-27 मिसाइलों के लिए 1500 करोड़ रुपये का सौदा किया है.
अख़बार लिखता है कि ये मिसाइलें हवा से हवा में मार करने में सक्षम हैं. ये मिसाइलें सुखोई-30 MKI लड़ाकू विमानों पर तैनात होंगी और इनकी तैनाती से हवा में हवा में मार करने की क्षमता में इज़ाफ़ा होगा.
अमरीका ने भारत पर रूस से ये डील न करने का काफ़ी दबाव बनाया था लेकिन भारत ने आख़िरकार ये डील कर ली.
अख़बार ये भी लिखता है वायुसेना ने पिछले 5
दिलचस्प बात ये है कि विक्रम का चयन मर्चेंट नेवी में हांगकांग की एक शिपिंग कंपनी में हो गया था, लेकिन उन्होंने सेना के करियर को ही तरजीह दी.
गिरधारी लाल बत्रा बताते हैं, "1994 की गणतंत्र दिवस परेड में एनसीसी केडेट के रूप में भाग लेने के बाद विक्रम ने सेना के करियर को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था. हाँलाकि उनका चयन मर्चेंट नेवी के लिए हो गया था. वो चेन्नई में ट्रेनिंग के लिए जाने वाले थे. उनके ट्रेन के टिकट तक बुक हो चुके थे."
"लेकिन जाने से तीन दिन पहले उन्होंने अपना विचार बदल दिया. जब उनकी माँ ने उनसे पूछा कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो, तो उनका जवाब था, ज़िंदगी में पैसा ही सब कुछ नहीं होता. मैं ज़िंदगी में कुछ बड़ा करना चाहता हूँ, कुछ आश्चर्यचकित कर देने वाला, जिससे मेरे देश का नाम ऊँचा हो. 1995 में उन्होंने आईएमए की परीक्षा पास की."
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इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने पर एक बड़ी सी तस्वीर भी छपी है जो उन्नाव रेप पीड़िता के गांव की है. गांव में पुलिसबलों की तैनाती है और तस्वीर में कई पुलिस कर्मी बाहर कुर्सियों पर बैठे दिख रहे हैं.
इसके अलावा अख़बार की एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक़ पीड़िता के चाचा का आरोप है कि पीड़िता की लोकेशन और आने-जाने से जुड़ी निजी जानकारियां लीक की गईं, ताकि अपराध को अंजाम दिया जा सके. पुलिस का कहना है कि वो इन आरोपों की जांच कर रही है.
इंडियन एक्सप्रेस की ही एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया है कि पीड़िता के गांव में ख़ौफ़ और दुख का माहौल है. अख़बार के मुताबिक़ गांव वालों का कहना
भारतीय सेना में जाने का जज़्बा विक्रम में 1985 में दूरदर्शन पर प्रसारित एक सीरियल 'परमवीर चक्र' देख कर पैदा हुआ था.
विक्रम के जुड़वाँ भाई विशाल बत्रा याद करते हैं, "उस समय हमारे यहाँ टेलिविजन नहीं हुआ करता था. इसलिए हम अपने पड़ोसी के यहाँ टीवी देखने जाते थे. मैं अपने सपने में भी नहीं सोच सकता था कि उस सीरियल में देखी गई कहानियाँ एक दिन हमारे जीवन का हिस्सा बनेंगीं."
"कारगिल की लड़ाई के बाद मेरे भाई विक्रम भारतीय लोगों के दिलो-दिमाग़ में छा गए थे. एक बार लंदन में जब मैंने एक होटल रजिस्टर में अपना नाम लिखा तो पास खड़े एक भारतीय ने नाम पढ़ कर मुझसे पूछा, 'क्या आप विक्रम बत्रा को जानते हैं?' मेरे लिए ये बहुत बड़ी बात थी कि सात समुंदर पार लंदन में भी लोग मेरे भाई को पहचानते थे."
है कि पीड़िता के मां ने उन्हें भी धमकियों के बारे में बताया था.
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विक्रम बत्रा बचपन से ही साहसी और निडर बच्चे थे. एक बार उन्होंने स्कूल बस से गिरी एक बच्ची की जान बचाई थी.
विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल बत्रा याद करते हैं, "वो लड़की बस के दरवाज़े पर खड़ी थी, जो कि अच्छी तरह से बंद नहीं था. एक मोड़ पर वो दरवाज़ा खुल गया और वो लड़की सड़क पर गिर गई. विक्रम बत्रा बिना एसेंकेंड गंवाए चलती बस से नीचे कूद गए और उस लड़की को गंभीर चोट से बचा लिया."
"यही नहीं वो उसे पास के एक अस्पताल ले गए. हमारे एक पड़ोसी ने हमसे पूछा, क्या आपका बेटा आज स्कूल नहीं गया है? जब हमने कहा कि वो तो स्कूल गया है तो उसने कहा कि मैंने तो उसे अस्पताल में देखा है. हम दौड़ कर अस्पताल पहुंचे तो हमें सारी कहानी पता चली."
दिनों में 7600 करोड़ के सुरक्षा सौदे किए हैं.
कारगिल की लड़ाई से कुछ महीने पहले जब कैप्टेन विक्रम बत्रा अपने घर पालमपुर आए थे तो वो अपने दोस्तों को 'ट्रीट' देने 'न्यूगल' कैफ़े ले गए.
जब उनके एक दोस्त ने कहा, "अब तुम फ़ौज में हो. अपना ध्यान रखना..."
तो उन्होंने जवाब दिया था, "चिंता मत करो. या तो मैं जीत के बाद तिरंगा लहरा कर आउंगा या फिर उसी तिरंगे में लिपट कर आउंगा. लेकिन आउंगा ज़रूर."
परमवीर चक्र विजेताओं पर किताब 'द ब्रेव' लिखने वाली रचना बिष्ट रावत बताती हैं, "विक्रम बत्रा कारगिल की लड़ाई का सबसे जाना पहचाना चेहरा थे."
"उनका करिश्मा और शख़्सियत ऐसी थी कि जो भी उनके संपर्क में आता था, उन्हें कभी भूल नहीं पाता था. जब उन्होंने 5140 की चोटी पर कब्ज़ा करने के बाद टीवी पर 'ये दिल मांगे मोर' कहा था, तो उन्होंने पूरे देश की भावनाओं को जीत लिया था."
"वो कारगिल युद्ध के उस सिपाही का एक चेहरा बन गए थे जो अनी मातृभूमि की रक्षा के लिए सीमा पर गया और शहीद हो गया."