Sunday, October 14, 2018

पेट्रोल पंप पर गैस भराते समय कार चालक ने किया कुछ ऐसा जिसे देखकर

न्यू जर्सी: पेट्रोल पंप पर अपनी कार में गैस  भराने आए एक युवक ने कुछ ऐसा किया जिस वजह से देखते ही पेट्रोल पंप पर आग लग गई. हालांकि पेट्रोल पंप कर्मचारियों की समझदारी से आग पर समय रहते ही काबू पा लिया गया. और इस घटना में किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ. पुलिस फिलहला इस मामले में आरोपी की तलाश कर रही है. दरअसल, यह पूरा मामला न्यू जर्सी का है. इस घटना के सीसीटीवी फुटेज में साफ तौर पर दिख रहा है कि किस तरह से कार चालक पहले पंप पर गैस लेने के लिए रुकता है. लेकिन इससे पहले की पंप के कर्मचारी इस वजह से गैस का पाइप उससे लगी मशीन के साथ उखड़ जाता है और वहां आग लग जाती है. गैस पंप पर लगी आग को देखने के बाद पेट्रोल पंप का कर्मचारी फौरन वहां आता है और आग पर काबू पाने की कोशिश करता है. महज कुछ सेकेंड्स के अंदर ही वह आग पर काबू भी पा लेता है. पुलिस अब इस मामले में आरोपी कार चालक की तलाश कर रही है. जो घटना के बाद से ही फरार है. उसकी कार से गैर की पाइप निकलाते वह कार लेकर जाने लगता है.पुणे: मोदी सरकार में मंत्री रामदास अठावले  (  ) ने 2019 से पहले भाजपा और शिवसेना के बीच बढ़ती तकरार को दूर करने के अनूठा सुझाव दिया है. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के कार्यकाल को दोनों सहयोगी दलों के बीच बराबर-बराबर बांटा जाना चाहिए. अठावले ने कहा कि वह शिवसेना और भाजपा के नेताओं के साथ इस प्रस्ताव पर विचार-विमर्श करेंगे. उन्होंने कहा, ‘‘अधिक सीटें पाने वाले दल के नेता का मुख्यमंत्री बनने का फॉर्मूला तो पहले से ही चल रहा है लेकिन मैं दोनों पार्टियों के नेताओं से इस नये फॉर्मूला पर बात करने वाला हूं’’. केंद्र की राजग सरकार और महाराष्ट्र सरकार में सत्तारूढ़ सहयोगी दोनों दलों के बीच विभिन्न मुद्दों पर मतभेद चल रहे हैं. शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने कहा है कि उनकी पार्टी भविष्य में सभी चुनाव अकेले लड़ेगी. दूसरी तरफ भाजपा ने कहा कि वह शिवसेना के साथ गठबंधन चाहती है लेकिन अगर समझौता नहीं हुआ तो वह अकेले अपने दम पर लड़ेगी.केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री ने मुंबई की दक्षिण मध्य लोकसभा सीट पर भी अपना दावा पेश किया जहां से फिलहाल शिवसेना के राहुल शेवाले सांसद हैं. अठावले ने कहा, ‘‘अगर भाजपा और शिवसेना 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन बनाते हें तो मैं शिवसेना से मुंबई दक्षिण मध्य लोकसभा को मेरे लिए छोड़ने को कहूंगा और बदले में मैं भाजपा को शिवसेना के लिए पालघर सीट छोड़ने के लिए मनाऊंगा’’. भाजपा और शिवसेना ने गठबंधन में घटक दल होने के बावजूद इस साल मई में पालघर लोकसभा उपचुनाव एक दूसरे के खिलाफ लड़ा था जिसमें भाजपा के राजेंद्र गावित ने शिवसेना के श्रीनिवास वनागा को हराया था. अठावले ने यह भी कहा कि अगर शिवसेना और भाजपा गठबंधन नहीं करते, तो भी उनके लिए मुंबई दक्षिण मध्य सीट पर जीत पाना बहुत मुश्किल नहीं होगा.
नई दिल्ली : जन अधिकार पार्टी प्रमुख और बिहार के मधेपुरा से सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव  (   ) ने गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हमले को 'सियासी खेल' करार दिया है. उन्होंने कहा कि गुजरात की जिस बच्ची से रेप की बात कही जा रही है उसकी अभी तक मेडिकल रिपोर्ट नहीं आई है. आखिर उसे क्यों छुपाया गया? अगर रेप हुआ तो स्पीडी ट्रायल हो. अगर यह सिर्फ बिहार और यूपी के लोगों को भगाने की साजिश थी तो इसकी जल्द जांच कर उजागर किया जाय. इस पूरे घटनाक्रम के पीछे बड़ा सियासी खेल है. पप्पू यादव ने कहा कि गुजरात की BJP सरकार रेप की घटना से ठीक पहले 80 फीसद सरकारी और निजी नौकरियों को स्थानीय लोगों को देने का ऐलान कर रही थी.  के मंत्री, सांसद और विधायक 80 प्रतिशत नौकरी स्थानीय लोगों को नहीं देने पर फैक्टरी में ताला लगा देने का दावा कर रहे थे. इसी बीच यह वाकया हुआ और यूपी-बिहार के लोगों को भगाया गया.  इस पूरे घटनाक्रम पर  और  की चुप्पी संदेह पैदा करती है.
पप्पू यादव ने   सांसद रमेश बिधूड़ी पर भी हमला बोला है. उन्होंने बिधूड़ी के कथित बयान को लेकर कहा है कि ये UP-बिहार के लोगों को दिल्ली से भगा देने की बात करते हैं. UP-बिहार वालों से पहले काम कराओ और फिर पीट कर भगाओ.  PM मोदी और अमित शाह को इसका जवाब देना चाहिए. इन पर रासुका लगाएं, नहीं तो मैं इनका 'इलाज' UP-बिहार के साथ मिलकर करूंगा.

Monday, October 8, 2018

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

हीं, एक और महिला ने गौतम अधिकारी पर बिना अनुमति के किस करने का आरोप लगाया है. गौतम अधिकारी उस वक़्त मुंबई में डीएनए के प्रधान संपादक थे. गौतम अधिकारी का कहना है कि उन्हें उस वाक़ये के बारे में याद नहीं है. टाइम्स ऑफ इंडिया के हैदराबाद के रेजिडेंट एडिटर केआर श्रीनिवास पर भी कई महिलाओं ने दुर्व्यवहार के आरोप लगाए हैं.
इस मामले में शनिवार को टाइम्स ऑफ इंडिया के पब्लिशर बीसीसीएल ने एक बयान जारी कर कहा है कि वो इसकी जांच कर रहा है और अगर ऐसा हुआ है तो बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. हिन्दुस्तान टाइम्स की एक पूर्व कर्मी ने ट्विटर पर अख़बार के राष्ट्रीय राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ़ प्रशांत झा के व्यवहार को असहज करने वाला बताया है. हिन्दुस्तान टाइम्स के एक प्रवक्ता ने कहा है कि इसकी जांच सोमवार से शुरू हो जाएगी.
पिछले महीने जब बॉलीवुड अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने जाने-माने अभिनेता नाना पाटेकर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया तो उसके बाद से कई महिलाएं सामने आईं. तनुश्री दत्ता ने 2008 में फ़िल्म की शूटिंग के दौरान नाना पाटेकर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है. तनुश्री दत्ता ने फ़िल्मकार विवेक अग्निहोत्री पर भी आरोप लगाया है कि उन्होंने कपड़े उतारने के लिए कहा था.
पिछले हफ़्ते जाने-माने एआईबी कॉमेडी ने उत्सव चक्रव्रती से सभी तरह के संबंध तोड़ने की घोषणा की थी. उत्सव पर एक लेखिका ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. उस लेखिका का कहना था कि एआईबी से उसने शिकायत भी की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई.
पिछले साल ये बात चली थी कि टेस्ट मैच को चार दिन का कर दिया जाए.
इसका कारण ये बताया गया था कि बहुत से टेस्ट मैच पाँचवें दिन तक पहुँच ही नहीं पाते तो क्यों न इस फ़ॉरमेट को ही छोटा कर दिया जाए.
ये चर्चा एक बार फिर शुरू हो गई है क्योंकि अब भारत और वेस्ट इंडीज़ के बीच राजकोट में खेला गया पहला टेस्ट मैच तीसरे ही दिन समाप्त हो गया.
ये पाँच दिवसीय टेस्ट मैचों का एक बेहद ख़राब उदाहरण है.
ये उनके लिए बेहद नुक़सानदायक है जो स्टेडियम के बाहर स्टॉल्स लगाते हैं और ब्रॉडकास्टर की भी दो दिन की कमाई मारी गई.
जानकार कहते हैं कि रविवार को क्रिकेट दिखाने का सबसे अच्छा दिन माना जाता है. लेकिन भारतीय टीम का हालिया टेस्ट मैच तो रविवार तक पहुँचा ही नहीं.
क्रिकेट समीक्षक विजय लोकपल्ली कहते हैं कि "सबसे बड़ी बात ये रही कि इस टेस्ट मैच का कोई स्तर ही नहीं था."
इन दिनों भारतीय टीम वेस्ट इंडीज़ टीम के साथ दो टेस्ट मैचों की सिरीज़ खेल रही है. पहला मैच भारतीय टीम जीत चुकी है.
लेकिन खेल समीक्षकों के अनुसार ज़्यादा बड़ा सवाल ये है कि हाल ही में इंग्लैंड के हाथों पाँच टेस्ट मैचों की सिरीज़ 4-1 से हारने वाली भारतीय क्रिकेट टीम, क्या वेस्ट इंडीज़ के साथ खेलकर ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ होने वाली टेस्ट सिरीज़ की तैयारी कर रही है.
और क्या वेस्ट इंडीज़ के ख़िलाफ़ टेस्ट सिरीज़ खेलकर वाकई टीम इंडिया को ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ कोई फ़ायदा मिलेगा?
भारतीय टीम के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि वो ऑस्ट्रेलियाई मैदानों पर ऑस्ट्रेलिया की टीम के ख़िलाफ़ आज तक कोई टेस्ट सिरीज़ नहीं जीत सके हैं.
विजय लोकपल्ली कहते हैं कि ये सिरीज़ ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ तैयारी के लिए तो नहीं है.
वो कहते हैं कि अपने घर में वेस्ट इंडीज़ को हराना, कंगारुओं से ऑस्ट्रेलियाई मैदान में भिड़ने की तैयारी बिल्कुल नहीं हो सकती. वहाँ के हालात, मौसम और पिच, सभी एकदम अलग होते हैं.
वहीं ऑस्ट्रेलिया की टीम वेस्ट इंडीज़ से कहीं बेहतर है. भले ही भारत ने आज तक ऑस्ट्रेलिया में कोई टेस्ट सिरीज़ नहीं जीती है लेकिन अब ये कारनामा करने का भारत के पास एक अच्छा मौक़ा है.
पर क्या ये मौक़ा इंग्लैंड में नहीं था? जहाँ भारतीय टीम कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई.लांकि इंग्लैंड के ख़िलाफ़ दो टेस्ट मैच ऐसे भी थे जिनमें दोनों टीमों के बीच बेहद क़रीबी का मामला रहा था और भारत इसमें हार गया था.
लोकपल्ली कहते हैं, "घर में वेस्ट इंडीज़ तो क्या किसी भी टीम से खेलकर ऑस्ट्रेलिया से भिड़ने की तैयारी नहीं हो सकती. इसके लिए भारत को ऑस्ट्रेलिया जाकर पहले दो या तीन अभ्यास मैच खेलने होंगे."
तो क्या जो टीम वेस्ट इंडीज़ के ख़िलाफ़ खेल रही है, क्या वही टीम ऑस्ट्रेलिया से टेस्ट सिरीज़ भी खेलेगी? और अगर कुछ बदलाव होने है तो वो बदलाव अभी क्यों नहीं हुए?
इसपर विजय लोकपल्ली का कहना है कि "इस टीम में अधिक बदलाव की ज़रूरत नहीं है. बल्लेबाज़ तो कहेंगे कि हम तो अपनी फ़ॉर्म को टेस्ट कर रहे हैं. तेज़ गेंदबाज़ इशांत शर्मा चोटिल हैं, भुवनेश्वर को आराम दिया गया है. तीनों स्पिनर आर अश्विन, रविंद्र जडेजा और कुलदीप यादव ऑस्ट्रेलिया जाएंगे ही."
"वहीं विकेट कीपर ऋषभ पंत का खेलना भी तय है क्योंकि ऋद्धिमान साहा शायद अभी भी पूरी तरह फ़िट नहीं हैं."
भारत के पूर्व ऑल-राउंडर मदन लाल भी इस मामले में विजय लोकपल्ली से सहमत दिखे.
उन्होंने कहा, "ईशांत शर्मा बेहद अनुभवी तेज़ गेंदबाज़ हैं और ऑस्ट्रेलियाई पिचों पर उन्होंने दमदार प्रदर्शन भी किया है."
सलामी जोड़ी को लेकर मदन लाल का मानना था कि मुरली विजय तकनीकी रूप से बेहद सक्षम खिलाड़ी हैं और शायद उन्हें कुछ और मौक़े मिलने चाहिए थे.
विजय लोकपल्ली भी मानते हैं कि ऐसा कोई विशेष खिलाड़ी नहीं है जो छूट रहा है. भारत ने ऑस्ट्रेलियाई दौरे के लिए अपने खिलाड़ी चुन रखे हैं, वह दिमाग़ी रूप से तैयार हैं.
उन्होंने कहा कि कुछ खिलाड़ियों को वहाँ के अनुरूप ढलने के लिए 15 दिन पहले जाना चाहिए.
अब एक सवाल खड़ा होता है कि क्या मुरली विजय और शिखर धवन की टेस्ट टीम में वापसी मुश्किल है?
विजय लोकपल्ली के अनुसार मुरली विजय कह रहे हैं कि चयनकर्ताओँ ने उनसे कोई बात नहीं की. शिखर धवन ने तो ख़ैर कुछ कहा ही नहीं. वैसे ऑस्ट्रेलिया की पिचें शिखर धवन को भाती हैं. वो बदक़िस्मत रहे कि इंग्लैंड में वो रन नहीं बना सके. जबकि दुबई में एशिया कप में उन्होंने काफ़ी रन बनाए. उनके बारे में ये कहना ग़लत है कि वो लाल गेंद के मुक़ाबले सफेद गेंद से अच्छा खेलते हैं. वो टेस्ट मैच के खिलाड़ी नहीं हैं, ये भी ग़लत है.

विजय लोकपल्ली को लगता है कि ऑस्ट्रेलिया के बाउंसी विकेट शिखर धवन के लिए बेहतर साबित होंगे क्योंकि वह कट और पुल शॉट शानदार खेलते हैं. मुरली विजय को दक्षिण अफ़्रीका और इंग्लैंड में पूरा मौक़ा दिया गया. पर वो नाकाम रहे. हालांकि उनके बाहर होने से कोई आश्चर्य नहीं हुआ. अब किस आधार पर उनकी वापसी हो, ये तो देखना पड़ेगा.
भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया में 21 नवंबर से 25 नवंबर तक तीन टी-20 और उसके बाद 6 दिसंबर से चार टेस्ट मैचों की सिरीज़ खेलेगी.
वहीं भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 12 जनवरी से तीन वनडे मैचों की सिरीज़ खेली विजय लोकपल्ली कहते हैं, "ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ टेस्ट सिरीज़ में के एल राहुल के साथ पृथ्वी शॉ को थोड़ा भरोसा देना होगा. पृथ्वी शॉ क्योंकि युवा हैं इसलिए टीम मैनेजमेंट ने उनसे बात भी की होगी कि अगर वो नाकाम भी होते हैं तो उन्हें कोई चिंता नहीं करनी चाहिए."
उन्होंने कहा, "ऐसा होना भी चाहिए क्योंकि भारत को एक ज़बरदस्त बल्लेबाज़ मिला है. उनके पास तकनीक, शॉट्स और टैंपरामेंट तीनों हैं. अब मुरली विजय और शिखर धवन में से कौन टेस्ट टीम में होगा ये चयन समिति पर है."
पिछली बार साल 2014-15 में ऑस्ट्रेलिया में खेली गई चार टेस्ट मैचों की सिरीज़ में भारत 2-0 से हारा था.

Monday, October 1, 2018

गर्व से कहो हम हिंदू हैं और हमें कोई चिंता नहीं'

आज के भारत में ये सवाल सियासत से परे नहीं है लेकिन ये सच है कि आर्यों को लेकर कोई एक राय नहीं है.
बीसवीं सदी तक माना जाता रहा कि इंडो-यूरोपीय भाषा बोलने वाला ये समूह मध्य एशिया से तकरीबन 2000-1500 ईसा पूर्व भारत आया होगा.
मतभेद इस बात पर रहा कि ये लोग हमलावर थे या फिर फिर भोजन के बेहतर मौके तलाशने वाले घुमंतु. पिछले 2 दशकों में आर्यों को भारतीय का मूल निवासी बताने वाली थ्योरी ने भी ज़ोर पकड़ा है.
ब्रिटेन की हडर्सफील्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मार्टिन पी रिचर्ड्स की अगुवाई में 16 वैज्ञानिकों के दल ने सच जानने के लिए मध्य एशिया, यूरोप और दक्षिण एशिया की आबादी के वाई-क्रोमोज़ोम का अध्ययन किया. वाई-क्रोमोज़ोम सिर्फ पिता से पुत्र को मिलता है.
इस शोध के मुताबिक कांस्य युग (3000-1200 ईसा पूर्व) में पलायन करने वालों में ज़्यादातर पुरुष होते थे.
पिछले साल मार्च में छपे इस रिसर्च पेपर ने लिखा है, 'हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि स्त्रियों के जीन्स लगभग पूरी तरह देसी हैं और 55 हज़ार पहले यहां बसे पहले इंसानों से काफी मेल खाते हैं लेकिन पुरुषों के जीन्स अलग हैं जिनका ताल्लुक दक्षिण-पश्चिम एशिया और मध्य एशिया से रहा है.'
हालांकि शोध का दावा है कि पलायन का ये सिलसिला हज़ारों साल तक चला होगा.
अगर आर्य वाकई मध्य एशिया के कैस्पियन सागर के आसपास घास के मैदानों से निकलकर दक्षिण एशिया आए होंगे तो बहुत मुमकिन है कि उनका रास्ता गिलगित-बल्टिस्तान से होकर गुज़रा हो.
गैलसन भी ब्रोकपाओं के डीएनए की जांच के लिए कोशिश कर रहे हैं.
उनका भी मानना है कि इस विषय पर अभी और पड़ताल की ज़रूरत है. 'आर्यों की ऐतिहासिक छवि विजेताओं की रही है. यही वजह है कि आज के ब्रोकपा युवाओं में इस पहचान को लेकर उत्साह बढ़ा है लेकिन हम मानते हैं कि इस दावे की और ज़्यादा खोजबीन की ज़रूरत है.'
इंटरनेट के आने के बाद ब्रोकपाओं की इस पहचान ने दुनिया भर के लोगों का ध्यान खींचा है. इन गांवों में जर्मन महिलाओं के 'शुद्ध आर्य बीज' की चाह में यहां आने के किस्से मशहूर हैं.
साल 2007 में फिल्मकार संजीव सिवन की डॉक्यूमेंटरी में एक जर्मन महिला कैमरे पर ये बात स्वीकार करती सुनी जा सकती है.लेकिन बटालिक में दुकान चलाने वाले इस समुदाय के एक शख्स ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, 'एक जर्मन महिला ने कई साल पहले मुझे लेह के होटलों में अपने साथ रखा. गर्भवती होने के बाद वो महिला जर्मनी वापस लौट गई. कुछ साल बाद वो अपने बच्चे के साथ मिलने वापस भी आई थी.'रोकपाओं की मौजूदा पीढ़ी में पढ़ाई पर ख़ासा ज़ोर है. लड़कियों को पढ़ने और करियर बनाने के लिए बराबरी के मौके मिलते हैं लेकिन नौकरियां सीमित हैं.
कमाई का सबसे बड़ा ज़रिया या तो खुबानी की बाग़वानी या फिर सेना और बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन से मिलने वाली मज़दूरी है.
बिजली अब भी सुबह-शाम सिर्फ एक घंटे रहती है. लेकिन जैसे-जैसे सैलानियों की आमद बढ़ रही है, तरक्की के नए रास्ते भी खुल रहे हैं.
मोबाइल की पैठ बढ़ने के साथ ब्रोकपा नौजवानों ने सरहद पार गिलगित के नौजवानों के साथ सोशल मीडिया के ज़रिए संपर्क भी कायम किया है.
ल्हामो बताती हैं, 'वो लोग भी हमारी भाषा में बात करते हैं और गर्व से कहते हैं कि वो आर्य हैं,'
आज की पीढ़ी के कई ब्रोकपाओं से हमने पूछा कि वो अपने गांवों में ही रोज़गार को प्राथमिकता देंगे या मौका मिलने पर किसी शहर में बसना पसंद करेंगे. हमें उत्तर मिला-जुला मिला.
गैलसन के लफ्ज़ों में 'रोज़ी-रोटी के साथ ही अपनी टपहचान' को बचाए रखना आज हमारे लिए सबसे बड़ा मसला है.'
21वीं सदी के इन शुद्ध आर्यों की जंग रियासतों के लिए नहीं, रोज़गार के लिए है. लेकिन अगर ये पहचान गंवाकर मिली तो इस जंग में जीत अधूरी ही रहेगी.